गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
मार्कण्डेयजी कहते हैं- इक्ष्वाकु, नाभग, रिष्ट, नरिष्यन्त, नाभाग, पृषध्र और धृष्ट-ये वैवस्वत मनुके पुत्र थे, जो पृथक्-पृथक् राज्यके पालक हुए। इन सबकी कीर्ति बहुत दूरतक फैली हुई थी और वे सभी शास्त्रविद्या तथा शस्त्रविद्यामें भी पारङ्गत थे। विद्वानोंमें श्रेष्ठ मनुने एक श्रेष्ठ पुत्र प्राप्त करनेकी इच्छासे मित्रावरुण नामक यज्ञ किया। उसमें होताके दोषसे विपरीत आहुति पड़नेके कारण पुत्र न होकर इला नामकी सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। कन्या उत्पन्न हुई देख मनुने मित्र और वरुणका स्तवन किया तथा इस प्रकार कहा-'देववरो! मैंने इस उद्देश्यसे यज्ञ किया था कि आप दोनोंकी कृपासे मुझे एक विशिष्ट पुत्रकी प्राप्ति हो; किन्तु यज्ञ सम्पन्न होनेपर कन्याका जन्म हुआ। यदि आप दोनों प्रसन्न हैं और मुझे वर देना चाहते हैं तो मेरी यह कन्या ही आप दोनोंके प्रसादसे अत्यन्त गुणवान् पुत्र हो जाय।' उन दोनों देवताओंने 'तथास्तु' कहा। जिससे वही कन्या इला तत्काल ही सुद्युम्न नामक पुत्रके रूपमें परिवर्तित हो गयी। मनुकुमार सुद्युम्न एक दिन वनमें शिकार खेल रहे थे। वहाँ महादेवजीके कोपसे उन्हें पुनः स्त्रीरूपमें हो जाना पड़ा। उस समय चन्द्रमाके पुत्र बुधने इलाके गर्भसे पुरूरवा नामक चक्रवर्ती पुत्र उत्पन्न किया। पुत्र हो जानेके बाद राजा सुद्युम्नने अश्वमेध नामक महान् यज्ञ करके पुनः पुरुष-रूप प्राप्त कर लिया। सुद्युम्नके तीन पुत्र हुए, जो उत्कल, विनय और गयके नामसे प्रसिद्ध थे। उन्होंने धर्ममें मन लगाकर इस पृथ्वीका पालन किया। राजा सुद्युम्न जब स्त्रीके रूपमें थे, तब उनके गर्भसे पुरूरवाका जन्म हुआ। पुरूरवा बुधके पुत्र थे, इसलिये उन्हें सुद्युम्नके राज्यका भाग नहीं मिला। तदनन्तर वसिष्ठजीके कहनेसे पुरूरवाको प्रतिष्ठान नामक उत्तम नगर दे दिया गया।
दिष्ट नामके एक राजा थे, जिनके पुत्रका नाम नाभाग था। यौवनके आरम्भमें ही उसकी दृष्टि एक वैश्य-कन्यापर पड़ी, जो बहुत ही सुन्दरी थी। उसको देखते ही नाभागका मन कामके अधीन हो गया। उसने उसके पिताके पास जाकर वह कन्या माँगी। वैश्यने देखा, राजकुमारका मन अपने वशमें नहीं है, वे कामके अधीन हो चुके हैं। तब उसने हाथ जोड़कर उनसे कहा- 'राजकुमार! आपलोग राजा हैं और हमलोग कर देनेवाले भृत्य। मैं आपके बराबर नहीं हूँ, फिर हमारे साथ आप वैवाहिक सम्बन्ध कैसे करना चाहते हैं।
१. ये 'नाभाग' मनु-पुत्र नाभागसे भिन्न हैं।
राजकुमारने कहा-काम और मोह आदिने मानव-शरीरकी समानता सिद्ध कर दी है। मुझे तुम्हारी कन्या पसंद है, अतः उसे मुझे दे दो; अन्यथा मेरा यह शरीर जीवित नहीं रह सकता।
वैश्य बोला-हम और आप दोनों ही राजाके अधीन हैं। पहले आप अपने पिताजीसे आज्ञा ले लीजिये; फिर मैं कन्या दूँगा और आप ग्रहण कर लीजियेगा।
राजकुमारने कहा-गुरुजनोंके अधीन रहनेवाले पुत्रोंको उचित है कि वे अन्य सभी कार्यों में गुरुजनोंसे पूछे, किन्तु ऐसे कार्योंमें पूछना ठीक नहीं। ऐसी बातें तो उनके सामने मुखसे निकालना भी कठिन है। कहाँ कामचर्चा और कहाँ गुरुजनोंको सुनाना; ये दोनों परस्पर-विरुद्ध हैं। हाँ, अन्य कार्योंके लिये उनसे पूछनेमें कोई हर्ज नहीं।
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- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
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- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
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- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
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- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
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- राजा खनित्रकी कथा
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- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य